सतयुग में क्या सच में atm होते थे आज के युग में ATM का उपयोग कर देश के किसी भी हिस्से में रुपये निकाल सकते है, लेकिन क्या आप को पता है सतयुग में भी ATM के समान व्यवस्था होती थी, इसको समझने के लिए आईये आपको एक छोटी सी कहानी सुताना हू
चार साधू थे,सभी वृंदावन को यात्रा के लिए जा रहे यात्रा के दौरान किसी भक्त की इच्छा हुई कि में भी थोडा पुण्य कमी लु लेकिन वो अधिक व्यस्तता के कारण साधू महात्मा के साथ न जा सका, साधु जी उसने निवेदन किया कि मेरे कुछ पैसे ले जाइये और इनको वृंदावन में परमेश्वर के यहा अर्पण कर दीजिए,
साधु रुपये लेकर प्रस्थान करते हैं ,मार्ग में बहुत भयानक जंगल पडता था, महात्मा ने कहा कि जंगल मे यदि चोर डाकू ने यह रुपये छीन लिये तो परहित में कलंकित हो जायेगे, वही समीप किसी व्यक्ति से पूछा कि यहा कोई हुण्डी का व्यापारी हे क्या, तो किसी ने मजाक मेम कह दिया साधु जी सही पास ही है, जिसका नाम नरसि जी हे वही है ,हुण्डी के व्यापारी (मतलब एक स्थान पर रुपये जमा करने के बाद किसी अन्य स्थान पर पुनः रुपये प्राप्त करना) सभी साधु नरसी जी के घर पहुच जाते
और कहते हैं हम आज रात्रि विश्राम आपके यही करेंगे नरसी जी कहते हैं कि मेरी बहुत बड़े भाग्य जो आप मेरे यहां रात्रि विश्राम करेंगे हमे जानकारी मिली है कि आप हुण्डी के व्यापारी हो ,तभी नरसी जी कहते हैं कि जी साधु महात्मा मे हुण्डी कोई व्यापारी नहीं हूं ,महात्मा नाराज होकर कहते हैं यदि आप हम पैसा ना लोगे तो हम भोजन नहीं करेंगे आपके यहां पर और भूखे ही प्रस्थान कर जाएंगे ,अब नरसी जी मन में सोचते हैं कि, यहां तो सुबह के पश्चात शाम को भोजन प्राप्त करने के लाले पड़े हैं और महात्मा जी बोल रहे हैं कि में हुण्डी का व्यापारी हू , कुछ सोचकर के चलो ठीक है मैं ही हू हुण्डी का व्यापारी हूं और वृंदावन में आपका पैसा जमा किया हुआ सांवरिया सेठ के पास प्राप्त हो जाएगा ,आपको पैसा उनसे बात कर लेनामहात्मा प्रस्थान कर जाते हैं वृंदावन पहुंचते हैं वृंदावन पहुंचकर दर्शन करने के पश्चात सांवरिया सेठ हुण्डी के व्यापारी को ढूंढते हैं 3 दिन हो जाते हैं लेकिन कोई सांवरिया सेठ नहीं मिलता ,तब जाकर भगवान श्री कृष्ण साँवलिया सेठ बनकर आते हैं और उनका जो पैसा नरसी जी के पास में जमा किया था साधु महात्मा को वापस लौटा देते हो जिसको महात्मा दान कर देते हैं ,तो दोस्तों जिस प्रकार आज ATM होता है
एक जगह से दूसरी जगह पर रुपये निकालने के लिए उसी प्रकार सतयुग में हुण्डी हुआ करती थी एक ही स्थान पर अन्य में उसे प्राप्त कर लिए जाते थे अथार्त उस समय मुद्रा कहते थे
चार साधू थे,सभी वृंदावन को यात्रा के लिए जा रहे यात्रा के दौरान किसी भक्त की इच्छा हुई कि में भी थोडा पुण्य कमी लु लेकिन वो अधिक व्यस्तता के कारण साधू महात्मा के साथ न जा सका, साधु जी उसने निवेदन किया कि मेरे कुछ पैसे ले जाइये और इनको वृंदावन में परमेश्वर के यहा अर्पण कर दीजिए,
साधु रुपये लेकर प्रस्थान करते हैं ,मार्ग में बहुत भयानक जंगल पडता था, महात्मा ने कहा कि जंगल मे यदि चोर डाकू ने यह रुपये छीन लिये तो परहित में कलंकित हो जायेगे, वही समीप किसी व्यक्ति से पूछा कि यहा कोई हुण्डी का व्यापारी हे क्या, तो किसी ने मजाक मेम कह दिया साधु जी सही पास ही है, जिसका नाम नरसि जी हे वही है ,हुण्डी के व्यापारी (मतलब एक स्थान पर रुपये जमा करने के बाद किसी अन्य स्थान पर पुनः रुपये प्राप्त करना) सभी साधु नरसी जी के घर पहुच जाते
और कहते हैं हम आज रात्रि विश्राम आपके यही करेंगे नरसी जी कहते हैं कि मेरी बहुत बड़े भाग्य जो आप मेरे यहां रात्रि विश्राम करेंगे हमे जानकारी मिली है कि आप हुण्डी के व्यापारी हो ,तभी नरसी जी कहते हैं कि जी साधु महात्मा मे हुण्डी कोई व्यापारी नहीं हूं ,महात्मा नाराज होकर कहते हैं यदि आप हम पैसा ना लोगे तो हम भोजन नहीं करेंगे आपके यहां पर और भूखे ही प्रस्थान कर जाएंगे ,अब नरसी जी मन में सोचते हैं कि, यहां तो सुबह के पश्चात शाम को भोजन प्राप्त करने के लाले पड़े हैं और महात्मा जी बोल रहे हैं कि में हुण्डी का व्यापारी हू , कुछ सोचकर के चलो ठीक है मैं ही हू हुण्डी का व्यापारी हूं और वृंदावन में आपका पैसा जमा किया हुआ सांवरिया सेठ के पास प्राप्त हो जाएगा ,आपको पैसा उनसे बात कर लेनामहात्मा प्रस्थान कर जाते हैं वृंदावन पहुंचते हैं वृंदावन पहुंचकर दर्शन करने के पश्चात सांवरिया सेठ हुण्डी के व्यापारी को ढूंढते हैं 3 दिन हो जाते हैं लेकिन कोई सांवरिया सेठ नहीं मिलता ,तब जाकर भगवान श्री कृष्ण साँवलिया सेठ बनकर आते हैं और उनका जो पैसा नरसी जी के पास में जमा किया था साधु महात्मा को वापस लौटा देते हो जिसको महात्मा दान कर देते हैं ,तो दोस्तों जिस प्रकार आज ATM होता है
एक जगह से दूसरी जगह पर रुपये निकालने के लिए उसी प्रकार सतयुग में हुण्डी हुआ करती थी एक ही स्थान पर अन्य में उसे प्राप्त कर लिए जाते थे अथार्त उस समय मुद्रा कहते थे